मैने भीड में टटोलके देखा
एक सन्नाटा सा था वहा।
माथे से चिखती हुई चिलकारीयों मे
ये नादान दिल गुंमसुम बैठा था।
जिंदगी की रफतार बढती गयी
खुदको खो बैठा में उस तेज हवाओ में
एक पहिया छूट गया पीछे
और में आगे खिचता गया आंधियो में।
आंखे खुली तोह खुदको पाया
बीच एक बडे बवंडर में
खोखले वादे और झूठे रिषतो की
अनगीनत ,नश्वर लकीरो में।
आवाज तोह लगायी थी मैने
चीखा-चिललया भी था..
कम्बखत क्या पता था मुझे
की सन्नाटा भी बौखलाया था।
फिर निकल पडा मै,ऊस थिरक्ती सैर पे।
जहाँ थी सुलझी हुई पहेली
विक्षोभ ने ले रखी थी वहा
चुप्पी की अंगडाई...
विक्षोभ ने ले रखी थी वहां
चुप्पी की अंगडाई......
मनीषा पुरंदरे
16.6.2020
WGC
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